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पोंगल

पोंगल 2024, 2025 और 2026

पोंगल एक पारंपरिक दक्षिण भारतीय फसल की कटाई का उत्सव है, और हिंदू पंचांग वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है।

सालतारीखदिनछुट्टियांराज्य / केन्द्र शासित प्रदेश
202415 जनवरीसोमवारपोंगल AP, AR, PY & TN
202514 जनवरीमंगलवारपोंगल PY & TN
15 जनवरीबुधवारपोंगल AP & TG
202614 जनवरीबुधवारपोंगल AP, PY, TG & TN
कृपया पिछले वर्षों की तारीखों के लिए पृष्ठ के अंत तक स्क्रॉल करें।

भारत की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और कृषि समुदायों से संबंधित है, और इसलिए फसल कटाई का यह उत्सव प्रासंगिक और लोकप्रिय दोनों है। यह आमतौर पर जनवरी के मध्य में मनाया जाता है, और महीने के 14वें या 15वें दिन के आसपास शुरू होता है। यह उत्सव मौसम के परिवर्तन की खुशी में मनाया जाता है। यह फसलों की कटाई का उत्सव शामिल करता है और साथ ही यह दर्शाता है कि वर्ष के लिए क्षेत्र में मानसून का मौसम समाप्त हो गया है।

पोंगल शब्द तमिल के पोंगा शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “उबालना।” इस शब्द की व्युत्पत्ति पोंगल के अर्थ को “बहुलता” या “अधिकता” के रूप में दर्शाती है। इस उत्सव के दौरान, भारतीय लोग फसल की अधिकता के लिए भगवान को धन्यवाद करते हैं। यह महीना विवाह आदि समारोहों के लिए एक पारंपरिक महीना होता है क्योंकि फसल की कटाई को आमतौर पर भोजन की बहुलता से जोड़ा जाता है, जिससे बड़ा, पारंपरिक विवाह सम्मलेन आयोजित करना काफी आसान हो जाता है।

उत्सव के पहले दिन को भोगी पोंगल कहा जाता है, और यह उत्सव हिंदू देवता भगवान इंद्र के सम्मान में आयोजित किया जाता है जो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बादलों को उसकी वर्षा देते हैं। संपन्नता और सर्दी के मौसम की समाप्ति का त्योहार मनाने के लिए एक बड़ा अलाव जलाया जाता है। कई परिवार घर की पुरानी अनुपयोगी चीजों को अलाव में डालते हैं और इसके चारों तरफ युवतियां नाचती हैं और पारंपरिक गाने गाती हैं। परिवार और गाँव उत्सव के दूसरे दिन की रस्मों में प्रयोग करने के लिए चावल, गन्ना और हल्दी तैयार करने के लिए भी इस दिन का प्रयोग करते हैं।

उत्सव का दूसरा दिन भगवान सूर्य के लिए समर्पित होता है। वो एक हिन्दू देवता हैं। दिन की शुरुआत पूजा के साथ होती है। इस अनुष्ठानिक कार्य के लिए चावल को दूध के साथ एक मिट्टी के बर्तन में उबालकर खीर बनाने की जरुरत होती है। इसके बाद, भगवान सूर्य के सामने इस खीर का भोग लगाया जाता है। एक दिन पहले तैयार की गयी हल्दी को चावल के बर्तन के चारों तरफ बांधकर भगवान सूर्य के सामने चढ़ाया जाता है। अन्य पारंपरिक चढ़ावे में गन्ना, नारियल और केले होते हैं। पारंपरिक कपड़े पहनकर और अपने शरीर पर निशान बनाकर लोग यह उत्सव मनाने की तैयारी करते हैं। इस दिन लकड़ी की चौकी पर भगवान सूर्य का चित्र भी बनाया जाता है, जिसे कोलम कहा जाता है।

पोंगल उत्सव के तीसरे दिन को मात्तु पोंगल कहते हैं और यह दिन गायों की पूजा के लिए समर्पित होता है। मवेशियों को मोती, घंटी, अनाज, और फूलों की माला से सजाया जाता है और इसके बाद उनके मालिक और स्थानीय ग्रामीण उनकी पूजा करते हैं। उन्हें खिलाया जाता है और गाँव में ले जाया जाता है जहाँ पूरे उत्साह के साथ जश्न मनाया जाता है। इसके बाद गायों को भगवान को चढ़ाया गया पोंगल खिलाया जाता है। इसके बाद बैलों की दौड़ और अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

पोंगल के अंतिम दिन को कन्नुम पोंगल कहते हैं। सभी परिवार एक हल्दी के पत्ते को धोकर इसे जमीन पर बिछाते हैं और इस पर एक दिन पहले का बचा हुआ मीठा पोंगल रखते हैं। वे गन्ना और केला भी शामिल करते हैं। कई महिलाएं यह रस्म प्रातः काल नहाने से पहले करना पसंद करती हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों के सुख और समृद्धि के लिए भी प्रार्थना करती हैं।

पिछले कुछ वर्ष

सालतारीखदिनछुट्टियांराज्य / केन्द्र शासित प्रदेश
202315 जनवरीरविवारपोंगल AP, AR, PY, TG &
TN
202214 जनवरीशुक्रवारपोंगल PY & TN
15 जनवरीशनिवारपोंगल AP & TG
202114 जनवरीगुरूवारपोंगल AP, AR, PY & TN
202015 जनवरीबुधवारपोंगल AP, AR, PY & TN
201914 जनवरीसोमवारपोंगल AP, AR, PY & TN
201814 जनवरीरविवारपोंगल AP, AR, PY & TN
201714 जनवरीशनिवारपोंगल AP, AR, PY & TN